Nishat Gauhar

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लेख -15-Dec-2021

  क्या मुझे मनुष्य होने पर गर्व है?
यह एक ऐसा सवाल है जिसपर पहले क्षण में मचल कर हां कहने को दिल चाहता है दूसरे ही क्षण में यह संदेह होता है क्या हम मनुष्य भी है या नहीं ? कुदरत की बनाई सभी रचनाओं में मानव सबसे बेहतरीन ऐसा माना जाता है परंतु क्या हम सच में सबसे बेहतरीन कहलाने लायक हैं ? कुदरत ने हम मनुष्यों को क्या कुछ नहीं दिया देखने को आंखें, सोचने को दिमाग,सुनने को कान , बोलने को जुबान और भी बहुत कुछ। आज हम आसमान की बुलंदियों को छू सकते हैं और समुंद्र की गहराई को भी माप सकते हैं। हम बाज की तरह उड़ने तो लगे , मछलीयों की तरह तैरना सीख लिया पर क्या हम कुत्तों की तरह वफादारी सीख पाए ? जानवर तो अपनी भूख मिटाने के लिए दूसरों की जान लेते हैं पर हम मनुष्य कभी धर्म व जाति के परदे के पीछे छुप कर आदमखोर हो जाते हैं। तो कभी दौलत व शोहरत की आड़ में जान के प्यासे हो जाते हैं, तो कभी हवस की भूख मिटाने के लिए किसी की इज्जत को नोच खाते हैं। प्रकृति ने ऐसा तो नहीं बनाया था मनुष्य को !!! 
   अपने फायदे के लिए किसी दूसरे का गला काट देना यह तो हमने दुनिया में आकर ही सीखा है ।बुद्धि बल में सबसे श्रेष्ठ कहा जाने वाला मनुष्य अपने बल का प्रयोग किस तरह करता है इसका नमूना तो हम आए दिन अखबारों और सुर्खियों में देखते हैं। बुद्धि का प्रयोग कर बुलंदी की चाह ने हमें इतना छोटा कर दिया कि हम मनुष्य होने पर गर्व करने में भी संकोच होता है । भावनाओं के बवंडर में जब हम अपनों का का हाथ थामते हैं उस क्षण तो हम इंसान रहते हैं लेकिन जैसे ही हम इस बवंडर को चीरते हुए दौलत के तराजू में रिश्तो को तोलते हैं इंसानियत दम तोड़ देती है । आकार व प्रकार से तो हम मनुष्य हैं पर हमारे आचरण व विचार हमें सवालों के कटघरे में खड़ा करती है। प्रकृति ने हमें यह खूबसूरत जीवन दिया, खुश होने के अनेक कारण दिए । आज हम उसी के दुश्मन बन बैठे हैं। हम मनुष्य यह तो चाहते हैं कि हम रोग मुक्त रहें पर हम ने पृथ्वी को इतने रोग दिए हैं कि हमारी आत्मा हमें इंसान होने पर गुमान करने की इजाजत नहीं देती । प्रकृति ने हमें बुद्धिजीवी बनाकर हमें जीवनदान दिया और हम मानव अपनी बुद्धि का प्रयोग कर प्रकृति के जीवन को ही अंधकार में ढकेलने लगे ।आज ना जाने कितनी प्रजातियां ऐसी है जिन्हें हम मनुष्यो ने संकटग्रस्त कर डाला है। इंसान ऐसा सामाजिक प्राणी है जो समाज में रहकर समाज के साथ ही छल करता आ रहा है। कभी धर्म के नाम पर ,कभी जाति के नाम पर ,कभी रंग व क्षमता, तो कभी पैसे व रुतबे के नाम पर शोषण करते आ रहे है। यह सब किसी ने हमें कक्षा में बैठाकर नहीं सिखाया ऐसी सोच को हम मानव ने ही अपने अंदर पालन- पोषण कर बड़ा किया है। सोशल मीडिया और किसी बैठक में हम समान अधिकार की बड़ी-बड़ी बातों का ढोंग कर लेते हैं पर जब बात वास्तविकता में पालन करने की होती है तो हम भाषणों को ही याद कर दिल बहला लेते हैं । आदर्शों को ताक पर रखकर अपना उल्लू सीधा करना हमने खूब सीखा है पर क्या हम सच में अपने मानव होने पर गर्व करने लायक कुछ कर पाए यह अभी भी शंकाओं के घेरे में है।

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1 Comments

Farhad ansari

23-Dec-2021 07:11 PM

👏👏

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